यह बताने की जरूरत नहीं है कि आज ही के दिन सरदार भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव जैसे देशभक्तों को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी के फंदे से लटका दिया था। हमारे देश के नौजवान के लिए यह जानकारी सिर्फ और सिर्फ तीन देशभक्त युवकों की आजादी के लिए फांसी के फंदे को चूमने जितना है। लेकिन बात कहीं दूर तलक जाती है। जेल की सजा काटते हुए भगत सिंह ने जो दस्तावेज लिखे उनको पढ़ने के बाद भगत सिंह को मात्र एक देशभक्त और एक जुनूनी उत्साही युवा के बतौर देखना हमारी नासमझी है। भगत सिंह देशभक्ति की परिभाषा से बहुत आगे विश्व मानव थे।
उनका उद्देश्य भारतवासियों को ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों से न केवल मुक्त कराना था बल्कि इंसान द्वारा इंसानों पर किसी भी तरह के शोषण के विरोध और उसका खात्मा करना था। दुर्भाग्य की बात है कि हम भगत सिंह को मात्र एक देश को आजादी दिलाने वाले नायकों में से एक मानते हैं जबकि भगत सिंह देशभक्ति की विचारधारा से आगे पूरे विश्व के शोषित वर्गों की लड़ाई की बात करते नजर आते हैं।
भगत सिंह ने एक बार भावुक होकर कहा था कि 'मैं जिस संसार का स्वप्न देखता हुं उसमें देशों के बीच दीवारें हट जाएंगी, सारा संसार एक हो जाएगा और हर व्यक्ति यह सोचकर काम करेगा कि दूसरों के लिए क्या अच्छा है।' शहीद भगत सिंह के इन विचारों का जिक्र उनकी भतीजी वीरेंद्र सिंधु ने 'युगदृष्टा' में लिखे लेख में भी किया है।
भगत सिंह ने अपने बारे में स्पष्ट करते हुए कहा भी था कि ' मैं एक आतंकवादी नहीं क्रांतिकारी हुं जिसके कुछ निश्चित विचार, आदर्श और उद्देश्य व एक लंबा कार्यक्रम है। पंजाब स्टूडेंट कांग्रेस के नाम लिखे एक संदेश में उन्होने कहा था 'आज हम नौजवानों को बम और पिस्तौल बनाने के लिए नहीं कह सकते, इन्हें औद्योगिक क्षेत्रों की गंदी बस्तियों में और गांवों में टूटे-फूटे झोपड़ो में रहने वाले करोड़ों लोगों को जगाना है।'
यह कहने की बात नहीं है कि भगत सिंह गौरे साम्राज्य का खात्मा कर देना चाहते थे बल्कि वह हर उस शोषण का विरोध करते थे जो इंसानियत के खिलाफ है। छात्रों औऱ युवाओं को लिखे एक लेख में भगत सिंह ने कहा था 'छात्रों का मुख्य काम पढ़ाई करना है और उन्हें अपना पूरा ध्यान इस ओर लगा देना चाहिए लेकिन क्या देश की परिस्थितियां और उसके हालात की जिम्मेदारी छात्रों पर नहीं होनी चाहिए? अगर नहीं तो मैं ऐसी शिक्षा प्रणाली को व्यर्थ मानता हुं।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने बहुत कम उम्र में ही रूस, फ्रांस और आयरलैंड की राज्य क्रांतियों का सम्पूर्ण अध्ययन कर लिया था। जिनसे वह सबसे अधिक प्रभावित भी हुए। रूस की क्रांति और मार्क्सवाद से अधिक प्रभावित थे। इसी अध्ययन के सहारे भगत सिंह गंभीर चिंतक, क्रांति के दार्शनिक, समाजवादी तथा नास्तिक बने। भगत सिंह में नेशनल कॉलेज में गहरे अध्ययन की प्यास जगी। कॉलेज का पाठ्यक्रम ही राजनीतिक पुस्तकों से भरा था। फ्रांस के प्रसिद्ध लेखक विक्टर ह्यूगो का उपन्यास 'ला मिजरेबल' पढ़कर भगत सिंह उत्साहित हो बैठे। इसमें फ्रांस की राज्य क्रांति का वर्णन है कि कैसे क्रांतिकारियों ने सम्राट सोहलवें लुई और उनकी अहंकारी महारानी एन्तोनेत के साथ हजारों जागीरदारों, अमीरों और पादरियों का सिर भुट्टे की तरह काटकर रख दिया। इस उपन्यास के बाद भगत सिंह ने फ्रांस की राज्य क्रांति को पूरी तरह पढ़ा। उस क्रांति की प़ृष्ठभूमि में रूसो और वाल्तेयर के रूढ़ि विरोधी विचार काम कर रहे थे। उनसे भगत सिंह बहुत प्रभावित हुए।
आयरलैंड का स्वतंत्रता आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता के साधकों के लिए प्रेरणास्त्रोत रहा है। भगत सिंह को डानब्रीन की पुस्तक माई फाइट फॉर आइरिश फ्रीडम से भगत सिंह को संघर्ष की नई प्रेरणा मिली। हीरोज एंड हीरोइन्स ऑफ रशिया नाम की पुस्तक ने भगत सिंह के मानस को रूसी क्रांति से जोड़ा और उन्होने रूसी क्रांति का गहराई से अध्य्यन किया। रूस, फ्रांस व आयरलैंड की क्रांतियों का गहन अध्ययन करने के साथ उन्होने दूसरे राजनीतिक साहित्य का भी अध्ययन किया।
भगत सिंह के दस्तावेजों का गहराई से अध्य्यन करने वालों ने यह तक कह डाला है कि
'ओ माताओं! ओ बहनों! ओ बेटियों!
नया समाजवादी समाज बनाने के लिए
हमें भगत सिंह जैसे लाल दे दो,
एक नहीं लाखों लाख दे दो।
उनका उद्देश्य भारतवासियों को ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों से न केवल मुक्त कराना था बल्कि इंसान द्वारा इंसानों पर किसी भी तरह के शोषण के विरोध और उसका खात्मा करना था। दुर्भाग्य की बात है कि हम भगत सिंह को मात्र एक देश को आजादी दिलाने वाले नायकों में से एक मानते हैं जबकि भगत सिंह देशभक्ति की विचारधारा से आगे पूरे विश्व के शोषित वर्गों की लड़ाई की बात करते नजर आते हैं।
भगत सिंह ने एक बार भावुक होकर कहा था कि 'मैं जिस संसार का स्वप्न देखता हुं उसमें देशों के बीच दीवारें हट जाएंगी, सारा संसार एक हो जाएगा और हर व्यक्ति यह सोचकर काम करेगा कि दूसरों के लिए क्या अच्छा है।' शहीद भगत सिंह के इन विचारों का जिक्र उनकी भतीजी वीरेंद्र सिंधु ने 'युगदृष्टा' में लिखे लेख में भी किया है।
भगत सिंह ने अपने बारे में स्पष्ट करते हुए कहा भी था कि ' मैं एक आतंकवादी नहीं क्रांतिकारी हुं जिसके कुछ निश्चित विचार, आदर्श और उद्देश्य व एक लंबा कार्यक्रम है। पंजाब स्टूडेंट कांग्रेस के नाम लिखे एक संदेश में उन्होने कहा था 'आज हम नौजवानों को बम और पिस्तौल बनाने के लिए नहीं कह सकते, इन्हें औद्योगिक क्षेत्रों की गंदी बस्तियों में और गांवों में टूटे-फूटे झोपड़ो में रहने वाले करोड़ों लोगों को जगाना है।'
यह कहने की बात नहीं है कि भगत सिंह गौरे साम्राज्य का खात्मा कर देना चाहते थे बल्कि वह हर उस शोषण का विरोध करते थे जो इंसानियत के खिलाफ है। छात्रों औऱ युवाओं को लिखे एक लेख में भगत सिंह ने कहा था 'छात्रों का मुख्य काम पढ़ाई करना है और उन्हें अपना पूरा ध्यान इस ओर लगा देना चाहिए लेकिन क्या देश की परिस्थितियां और उसके हालात की जिम्मेदारी छात्रों पर नहीं होनी चाहिए? अगर नहीं तो मैं ऐसी शिक्षा प्रणाली को व्यर्थ मानता हुं।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने बहुत कम उम्र में ही रूस, फ्रांस और आयरलैंड की राज्य क्रांतियों का सम्पूर्ण अध्ययन कर लिया था। जिनसे वह सबसे अधिक प्रभावित भी हुए। रूस की क्रांति और मार्क्सवाद से अधिक प्रभावित थे। इसी अध्ययन के सहारे भगत सिंह गंभीर चिंतक, क्रांति के दार्शनिक, समाजवादी तथा नास्तिक बने। भगत सिंह में नेशनल कॉलेज में गहरे अध्ययन की प्यास जगी। कॉलेज का पाठ्यक्रम ही राजनीतिक पुस्तकों से भरा था। फ्रांस के प्रसिद्ध लेखक विक्टर ह्यूगो का उपन्यास 'ला मिजरेबल' पढ़कर भगत सिंह उत्साहित हो बैठे। इसमें फ्रांस की राज्य क्रांति का वर्णन है कि कैसे क्रांतिकारियों ने सम्राट सोहलवें लुई और उनकी अहंकारी महारानी एन्तोनेत के साथ हजारों जागीरदारों, अमीरों और पादरियों का सिर भुट्टे की तरह काटकर रख दिया। इस उपन्यास के बाद भगत सिंह ने फ्रांस की राज्य क्रांति को पूरी तरह पढ़ा। उस क्रांति की प़ृष्ठभूमि में रूसो और वाल्तेयर के रूढ़ि विरोधी विचार काम कर रहे थे। उनसे भगत सिंह बहुत प्रभावित हुए।
आयरलैंड का स्वतंत्रता आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता के साधकों के लिए प्रेरणास्त्रोत रहा है। भगत सिंह को डानब्रीन की पुस्तक माई फाइट फॉर आइरिश फ्रीडम से भगत सिंह को संघर्ष की नई प्रेरणा मिली। हीरोज एंड हीरोइन्स ऑफ रशिया नाम की पुस्तक ने भगत सिंह के मानस को रूसी क्रांति से जोड़ा और उन्होने रूसी क्रांति का गहराई से अध्य्यन किया। रूस, फ्रांस व आयरलैंड की क्रांतियों का गहन अध्ययन करने के साथ उन्होने दूसरे राजनीतिक साहित्य का भी अध्ययन किया।
भगत सिंह के दस्तावेजों का गहराई से अध्य्यन करने वालों ने यह तक कह डाला है कि
'ओ माताओं! ओ बहनों! ओ बेटियों!
नया समाजवादी समाज बनाने के लिए
हमें भगत सिंह जैसे लाल दे दो,
एक नहीं लाखों लाख दे दो।
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