एक ऐसे समय में जब ईंट और सीमेंट और लोहे की बढ़ती कीमतों ने घर के निर्माण को मध्यमवर्ग की पहुंच से बाहर कर दिया है। हैदराबाद की एक संस्था ने प्लास्टिक की बोतलों से घर का निर्माण कर अनूठा प्रयोग किया है। संस्था का दावा है कि जहां एक तरफ बहुत कम कीमत पर घर बन सकेगा वहीं दूसरी तरफ इससे प्रदूषण भी कम होगा।
हैदराबाद की एक दंपत्ति ने 15/15 फीट का ये घर मात्र 75 हजार रूपये में तैयार किया है। इसमें लोहे की जगह बांस का और ईंटों की जगह बोतलों का इस्तेमाल किया है। प्लास्टिक की चार हजार बोतलों से बनी यह दीवार न केवल किसी आम दीवार की तरह मजबूत बल्कि सुंदर भी दिखाई देती है। इसके पीछे असल बुद्धि बेंगु हाउस इंडिया संगठन के संस्थापक प्रशांत और अरूणालिंगम हैं जो गत आठ वर्षों से घरों के निर्माण में बांस के उपयोग को प्रोत्साहित करने की कोशिशों में लगे हुए हैं।
प्रशांत का कहना है कि उन्हें महंगी होती ईंटों का विकल्प ढूढने का खयाल उस समय आया जबकि वह एक गांव में एक आदिवासी परिवार से बातचीत कर रहे थे। जिसका कहना था कि वह बांस से बने घर की दीवारें उठाने का तरीका नहीं जानते।
हैदराबाद की एक दंपत्ति ने 15/15 फीट का ये घर मात्र 75 हजार रूपये में तैयार किया है। इसमें लोहे की जगह बांस का और ईंटों की जगह बोतलों का इस्तेमाल किया है। प्लास्टिक की चार हजार बोतलों से बनी यह दीवार न केवल किसी आम दीवार की तरह मजबूत बल्कि सुंदर भी दिखाई देती है। इसके पीछे असल बुद्धि बेंगु हाउस इंडिया संगठन के संस्थापक प्रशांत और अरूणालिंगम हैं जो गत आठ वर्षों से घरों के निर्माण में बांस के उपयोग को प्रोत्साहित करने की कोशिशों में लगे हुए हैं।
प्रशांत का कहना है कि उन्हें महंगी होती ईंटों का विकल्प ढूढने का खयाल उस समय आया जबकि वह एक गांव में एक आदिवासी परिवार से बातचीत कर रहे थे। जिसका कहना था कि वह बांस से बने घर की दीवारें उठाने का तरीका नहीं जानते।
हैदराबाद के उप्पल इलाके में बांबू हाउस इंडिया के वर्कशॉप में ही बोतलों से घर के निर्माण का उपयोग किया गया। इस जगह प्रशांत आदिलाबाद और दूसरे इलाकों से आए कारीगरों को घरों के निर्माण औऱ फर्नीचर की तैयारी में बांस की ट्रेनिंग देते हैं।
बोतलों से दीवार के निर्माण के काम में शामिल एक कारीगर बाबूराव का कहना है कि जब हम बेकार बोतलों से दीवार बना रहे थे तो आसपास के लोग हमें देखकर हंस रहे थे और समझ रहे थे कि ये दीवार टिक नहीं पाएगी। लेकिन अब इस घर की मजबूती देखकर वह भी ऐसा ही घर बनाना चाहते हैं। प्रशांत का कहना था कि इस नई टेक्नॉलोजी के पीछे असल सोच यही है कि ग्रामीण इलाकों में घरों के निर्माण के खर्च को कम से कम किया जा सके। साथ ही प्रशांत को उम्मीद है कि इससे प्लास्टिक की बोतलों से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
एक बोतल को ईंट में बदलने के लिए इसमें मिट्टी और गोबर का मिश्रण भरा जाता है जिससे वह और भी मजबूत हो जाती है। जहां सीमेंट की एक ईंट पर पंद्रह रूपये और मिट्टी की ईंट पर तीन चार रूपये का खर्च आता है। वहीं बोतल की ईंट पर केवल एक रूपये का खर्च आएगा। निर्माण की इस टेक्नॉलोजी को वैज्ञानिक दृष्टि से मान्यता दिलाने के लिए आईआईटी दिल्ली से सहायता ले रहा है।
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